बिहार में मतदाता सूची को लेकर मचा बवाल, मौलाना महमूद मदनी बोले – मताधिकार छीना गया तो लोकतंत्र पर संकट
बिहार में चल रही मतदाता सूची की विशेष समीक्षा प्रक्रिया को लेकर जमीयत उलमा-ए-हिंद के प्रमुख मौलाना महमूद मदनी ने गहरी चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया संविधान और लोकतांत्रिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उनका मानना है कि इस तेजी से चल रही कार्रवाई से लाखों नागरिकों, खासकर अल्पसंख्यकों, प्रवासी मजदूरों और गरीबों के वोटिंग अधिकार खतरे में पड़ सकते हैं।
एनआरसी जैसी मांगों पर सवाल
मौलाना मदनी ने इस बात पर सवाल उठाया कि करोड़ों मतदाताओं की पुष्टि इतने कम समय में कैसे की जा सकती है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि जिनका जन्म 1987 के बाद हुआ है, उनसे माता-पिता के दस्तावेज मांगे जा रहे हैं, जो एक प्रकार से एनआरसी जैसी प्रक्रिया की याद दिलाते हैं। उन्होंने पूछा कि जब यह एनआरसी नहीं है, तो फिर ऐसी शर्तें क्यों लागू की जा रही हैं?
सबसे ज्यादा नुकसान किसे?
मदनी का मानना है कि जिन लोगों के पास औपचारिक शिक्षा या आवश्यक दस्तावेज नहीं हैं—जैसे कि ग्रामीण महिलाएं—वे सबसे ज्यादा प्रभावित होंगी। उन्होंने कहा कि कई लोग ऐसे हैं जो अपने माता-पिता से जुड़े दस्तावेज नहीं जुटा सकते, और इस वजह से उनका नाम वोटर लिस्ट से गायब हो सकता है।
संविधान की आत्मा से खिलवाड़
उन्होंने भारत के संविधान के अनुच्छेद 326 का हवाला देते हुए कहा कि वोट देने का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है और इसे छीनना संविधान की आत्मा के खिलाफ है। मदनी ने निर्वाचन आयोग से अपील की कि यह प्रक्रिया तुरंत रोकी जाए और मतदाता सूची को पारंपरिक तरीके से ही अपडेट किया जाए, न कि जटिल और भ्रमित करने वाली शर्तों से।
लोकतंत्र पर खतरा और जमीयत का रुख
मौलाना मदनी ने चेतावनी दी कि यदि मताधिकार छीना गया, तो इससे सिर्फ चुनाव प्रक्रिया पर नहीं बल्कि पूरे लोकतांत्रिक ढांचे पर जनता का विश्वास उठ जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि जमीयत उलमा-ए-हिंद हर नागरिक के मताधिकार की रक्षा के लिए संविधान के दायरे में रहकर संघर्ष करता रहेगा। अगर किसी भी तरह से यह अधिकार छीनने की कोशिश हुई, तो जमीयत हर स्तर पर उसका मुकाबला करेगा।
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