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यहाँ मुस्लिम कलाकार निभाते हैं रामायण के किरदार


तल्लीताल रामलीला कमेटी के अध्यक्ष रवींद्र पांडे का कहना है कि, ”नैनीताल की तल्लीताल रामलीला कमेटी करीब 126 साल पुरानी सबसे पुरानी रामलीला कमेटी है.” “यहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मिलकर रामलीला का मंचन शुरू किया.

उत्तराखंड के नैनीताल जिले में हर साल की तरह इस साल भी रामलीला का मंचन किया गया. यहां की रामलीला अपने आप में बेहद खास है, क्योंकि इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों के लोगों की भागीदारी है. दिलचस्प बात ये है कि ये कोई नई पहल नहीं है. पहाड़ी और शहरी संस्कृति का संगम कहे जाने वाले नैनीताल शहर में रहने वाले हिंदू और मुस्लिम दशकों से ऐसी रामलीला का मंचन देखते आ रहे हैं. हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों के कलाकार इन कलाकारों की वेशभूषा और सजावट का ख्याल रखते हैं. यही आपसी सौहार्द और प्रेम पहाड़ की इस रामलीला को अपने आप में खास बनाता है.

 स्वेच्छा से निभाते हैं भूमिकाएं 

वैसे तो नैनीताल जिले में कई स्थानों पर रामलीला का मंचन किया जाता है, लेकिन विशेषकर नैनीताल में, यहां दोनों संप्रदायों के लोग एकजुट होकर रामलीला का मंचन करते हैं. रामलीला में कुछ मुस्लिम कलाकार भी हैं जो 40 साल से किरदार निभा रहे हैं. यहां मुस्लिम समुदाय के लोग स्वेच्छा से रामलीला में विभिन्न भूमिकाएं निभाते आ रहे हैं. रामलीला में उनका अभिनय देखकर दर्शक मंत्रमुग्ध हो जाते हैं. रामलीला का मंचन देखने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम दर्शक भी आते हैं.

हिंदू और मुसलमानों ने एक साथ शुरुआत की

तल्लीताल रामलीला कमेटी के अध्यक्ष रवींद्र पांडे का कहना है कि, ”नैनीताल की तल्लीताल रामलीला कमेटी करीब 126 साल पुरानी सबसे पुरानी रामलीला कमेटी है.” “यहां हिंदू-मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मिलकर रामलीला का मंचन शुरू किया.” उनका कहना है कि, ”उस दौर में अकबर हुसैन ने जनक और मारीच की भूमिका निभाई थी और खुदाबक्श ने अंगद की भूमिका निभाई थी.” रवींद्र पांडे के मुताबिक, इसके बाद 1918 में राम सेवक सभा मल्लीताल, 1956 में आदर्श रामलीला समिति सूखाताल और 1973 में नव सांस्कृतिक सत्संग समिति शेर का डांडा में रामलीला की शुरुआत हुई. ”इन सभी में मुस्लिम समुदाय के लोग हिस्सा लेते थे और आज भी ले रहे हैं.”

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