MNREGA की जगह नया कानून: क्या है ‘वीबी-जी राम जी’, कैसे बदलेगा गांवों का रोज़गार सिस्टम?
देश में ग्रामीण रोज़गार से जुड़ा एक बड़ा बदलाव सामने आया है। केंद्र सरकार ने लगभग 20 साल से लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून (मनरेगा) की जगह एक नया विधेयक संसद में पेश किया है। इस नए प्रस्तावित कानून का नाम रखा गया है ‘विकसित भारत गारंटी फॉर रोज़गार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’, जिसे संक्षेप में वीबी-जी राम जी कहा जा रहा है। अगर यह विधेयक संसद से पास हो जाता है, तो यह सीधे तौर पर मनरेगा की जगह ले लेगा।
मनरेगा क्या था?
मनरेगा कानून साल 2005 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार लेकर आई थी। इसके तहत ग्रामीण इलाकों में रहने वाले परिवारों को साल में 100 दिन का रोज़गार देने की कानूनी गारंटी थी। इसमें काम न मिलने पर बेरोज़गारी भत्ता देने का भी प्रावधान था। देश के लगभग सभी ज़िलों में यह योजना लागू थी।
नया बिल क्या कहता है?
सरकार के नए प्रस्ताव के मुताबिक, ग्रामीण परिवारों को अब साल में 125 दिन तक रोज़गार देने की बात कही गई है। यह रोज़गार उन्हीं परिवारों को मिलेगा, जिनके वयस्क सदस्य अपनी मर्जी से अकुशल शारीरिक श्रम के लिए आगे आएंगे।
सरकार का कहना है कि यह योजना सिर्फ रोज़गार तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि गांवों में जल सुरक्षा, सिंचाई, सड़क, और पानी से जुड़े बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर ज़ोर देगी। इससे खेती के साथ-साथ ग्रामीण बाज़ार और कनेक्टिविटी बेहतर होने का दावा किया जा रहा है।
पैसा कौन देगा?
यहीं से विवाद शुरू होता है। मनरेगा में मजदूरी का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती थी, जबकि सामग्री का खर्च केंद्र और राज्य मिलकर तय अनुपात में देते थे।
लेकिन नए बिल में प्रस्ताव है कि:
कुल खर्च का 60% केंद्र सरकार देगी
40% खर्च राज्य सरकारों को उठाना होगा
हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों, पहाड़ी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में केंद्र सरकार 90% खर्च खुद उठाने की बात कर रही है।
अगर आवेदन के 15 दिन के भीतर किसी को काम नहीं मिलता, तो उसे बेरोज़गारी भत्ता दिया जाएगा, लेकिन इसका खर्च राज्य सरकारों को उठाना होगा। यह प्रावधान मनरेगा में भी मौजूद था।
सरकार का पक्ष
इस बिल को लोकसभा में कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पेश किया। उनका कहना है कि यह योजना मनरेगा से बेहतर है और इससे गांवों के लोगों की आमदनी बढ़ेगी।
उनका दावा है कि सरकार पहले ही मनरेगा से ज़्यादा पैसा ग्रामीण विकास पर खर्च कर चुकी है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि गांवों की बेहतरी ही महात्मा गांधी की सोच थी, और यह नया कानून उसी दिशा में कदम है।
विपक्ष क्यों नाराज़ है?
विपक्ष का आरोप है कि सरकार इस नए कानून के ज़रिए:
ज़्यादा अधिकार केंद्र सरकार को दे रही है, राज्यों पर अधिक आर्थिक बोझ डाल रही है और योजना का सारा श्रेय खुद लेना चाहती है. कांग्रेस नेताओं का कहना है कि मनरेगा में पंचायतों की भूमिका अहम थी, जबकि नए बिल में फंड और फैसलों का पूरा नियंत्रण केंद्र के पास चला जाएगा। प्रियंका गांधी ने लोकसभा में इस बिल का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि मनरेगा को सभी दलों का समर्थन मिला था, क्योंकि वह गरीबों के हित में था। उनका आरोप है कि हर योजना का नाम बदलना सरकार की आदत बन चुकी है। उन्होंने मांग की कि इस विधेयक को सीधे पास न करके स्थायी समिति के पास भेजा जाए, ताकि इस पर गहन चर्चा हो सके।
राहुल गांधी का हमला
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर कहा कि यह नया कानून ग्रामीण गरीबों की रोज़ी-रोटी को खतरे में डाल सकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि पहले ही बेरोज़गारी एक बड़ी समस्या है और यह बिल हालात को और खराब कर सकता है।
आगे क्या?
फिलहाल यह विधेयक संसद में पेश किया गया है। इसे लेकर सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस जारी है। अब यह देखना होगा कि यह बिल मौजूदा रूप में पास होता है, संशोधन के लिए भेजा जाता है, या फिर सरकार को इसमें बदलाव करने पड़ते हैं।
एक बात तय है—अगर यह कानून लागू हुआ, तो ग्रामीण भारत में रोज़गार की तस्वीर आने वाले वर्षों में काफी बदल सकती है।
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