प्रशांत किशोर के इनकार से कांग्रेस की कौन सी चुनौतियां बढ़ गई?
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस में शामिल होने से इनकार कर दिया है. कांग्रेस ने मंगलवार को ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. इसके बाद सवाल उठ रहे हैं कि कांग्रेस के सामने अब कितनी बड़ी चुनौती है.
कांग्रेस (Congress) में शामिल होकर अगले लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के विशेष एक्शन ग्रुप में भूमिका निभाने के प्रस्ताव से प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के इनकार को कांग्रेस नेता भले ही बहुत महत्व ना दे रहे हों लेकिन पीके के इस फैसले से कांग्रेस के मिशन लोकसभा से लेकर गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Election 2022) की तैयारियों को झटका लगा है. विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस को पीके की रणनीति में उम्मीद दिख रही थी.
लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी को घेरने के लिए कांग्रेस (Congress) नए सिरे से रणनीति बना रही है. उदयपुर चिंतन शिविर में इसकी तस्वीर साफ होनी है. लेकिन उससे पहले प्रशांत किशोर (Prashant Kishor) के सुझावों पर अमल करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने लोकसभा चुनाव के लिए एम्पावर्ड एक्शन ग्रुप बनाने का फैसला किया.
पीके ने कांग्रेस से करीब 400 लोकसभा सीटों पर फोकस करने और अपनी मीडिया रणनीति बदलने की सलाह दी थी. पीके को एक्शन ग्रुप का सदस्य बनने का प्रस्ताव दिया गया लेकिन उन्होंने कांग्रेस को झटका दे दिया! सवाल है कि बिना पीके क्या उनके सुझावों पर कांग्रेस अमल कर पाएगी?
प्रशांत किशोर के सुझाव
प्रशांत किशोर ने कांग्रेस को केंद्र में रखकर बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत गठबंधन तैयार करने की रणनीति भी साझा की थी. उन्होंने कांग्रेस से कुछ पुराने सहयोगियों को छोड़ नए सहयोगियों से हाथ मिलाने का प्रस्ताव दिया था इनमें बिहार में जेडीयू, बंगाल में टीएमसी और तेलंगाना में टीआरएस जैसी पार्टियां शामिल थी.
इन पार्टियों के अलावा पीके का आंध्र प्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी से लेकर अरविंद केजरीवाल तक से अच्छे रिश्ते हैं. अहमद पटेल के निधन और गुलाम नबी आजाद को किनारे लगाए जाने के बाद से कांग्रेस में अन्य दलों से बातचीत कर पाने वाले कद्दावर नेता की कमी है. पीके उस भूमिका में फिट बैठ रहे थे. उनके अलग होने के बाद कांग्रेस का गठबंधन प्लान भी प्रभावित होगा. एनसीपी, शिवसेना जैसे सहयोगी समय-समय पर कांग्रेस से यूपीए की कमान छोड़ने की मांग कर चुके हैं.
गुजरात में बड़ी चुनौती
पीके के जाने से कांग्रेस के लिए सबसे बड़ा संकट गुजरात में खड़ा हो गया है. साल के अंत में होने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पाटीदार नेता नरेश पटेल को पार्टी में शामिल करवा कर उन्हें चेहरा बनाने की योजना बना रही थी. सूत्रों के मुताबिक इसके पीछे पीके की रणनीति थी. नरेश पटेल ने कांग्रेस के सामने प्रशांत किशोर को प्रचार की कमान दिए जाने की शर्त रखी थी.
बीते शुक्रवार को नरेश पटेल ने दिल्ली आकर पीके से मुलाकात की. उनके कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का भी कार्यक्रम था लेकिन मुलाकात नहीं हुई. जाहिर है कांग्रेस के ‘गुजरात प्लान’ पर पानी फिरता हुआ नजर आ रहा है. हालांकि कांग्रेस के कुछ सूत्र दावा कर रहे हैं कि नरेश पटेल पार्टी में शामिल होंगे.
चुनाव और गठबंधनों के अलावा पीके कांग्रेस के अंदर भी बड़े बदलावों की पैरवी कर रहे थे जिसके अब अधूरा पड़ने की संभावना है. पीके के इनकार के करीब चौबीस घंटे बाद कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने सवाल के जवाब में कहा कि कांग्रेस ने पूरे देश में मूल्यों और काम से पहचान बनाई है. जब हम कांग्रेस की बात करते हैं तो व्यक्ति से ऊपर उठ कर मूल्यों की बात करते हैं. अलग-अलग समय में रणनीतिकारों से बात होती है. हम सबके सुझाव मानते हैं.
खेड़ा ने कहा कि किसी की महत्वाकांक्षा में कोई बुराई नहीं है. कुछ कारण रहे होंगे कि उन्होंने प्रस्ताव ठुकरा दिया. हालांकि पीके के भविष्य में कांग्रेस के लिए काम करने की संभावना से जुड़े सवाल पर खेड़ा ने कहा कि कांग्रेस के दरवाजे कभी भी बंद नहीं होते.
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